हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा शुरू की गई बाइक एंबुलेंस पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और CATS यानी सेंट्रलाइज्ड एक्सीडेंट एंड ट्रॉमा सर्विसेज को नोटिस जारी किया है. हाईकोर्ट ने कहा कि 4 हफ्ते में दिल्ली सरकार बताए कि CATS जैसी सुविधा होने के बावजूद बाइक एंबुलेंस को दिल्ली में क्यों शुरू किया गया. कोर्ट ने इस स्कीम पर सवाल खड़ा करते हुए दिल्ली सरकार से पूछा कि इस स्कीम को चलाने के पीछे सरकार का मकसद क्या है? हम समझना चाहते हैं कि इसको शुरू करने की जरूरत क्या थी?
हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर सवाल उठाए गए कि पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार की तरफ से जो बाइक एंबुलेंस शुरू की गई उसको चलाने वाले लोग क्वालिफाइड नहीं है. लिहाजा इमरजेंसी सर्विस को इस्तेमाल करने वाले मरीज के लिए तो यह घातक है ही साथ ही सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग भी. याचिका में कहा गया कि असिस्टेंस एम्बुलेंस ऑफिसर को ही बाइक एंबुलेंस चलाने के लिए फील्ड में उतार दिया गया. जबकि उनके पास ना कोई डिग्री है और ना ही एक्सिडेंट के दौरान दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर कोई ट्रेनिंग.
याचिका में कहा गया कि असिस्टेंस एम्बुलेंस ऑफिसर के पास हार्ट अटैक से लेकर पैरालिसिस अटैक जैसे हालात में मरीज को दवा और प्राथमिक उपचार देने का कोई अनुभव ही नहीं है. ये ऑफिसर्स सिर्फ ग्रेजुएट हैं और इनको सिर्फ कैट्स में आने वाले फोन रिसीव करने के लिए रखा गया था.
गौरतलब है कि CATS दिल्ली में एंबुलेंस सुविधा के रूप में काम करती है. जिसका मकसद मरीज को घर से अस्पताल लाने के बीच तक इमरजेंसी में चिकित्सा देना और समय पर पहुंचाना है. याचिका में सवाल उठाया गया है कि बाइक एंबुलेंस में जब चिकित्सा देने के लिए पैरामेडिकल स्टाफ है ही नहीं तो इस सुविधा से लोगों को फायदा कैसे मिल सकता है.
पिछले हफ्ते 7 फरवरी को एफआरबी स्कीम के माध्यम से दिल्ली सरकार ने अपने पायलट प्रोजेक्ट को ईस्ट दिल्ली में शुरू किया. सरकार की योजना यह है कि जहां पर एंबुलेंस की गाड़ी नहीं पहुंच पा रही, वहां पर बाइक एंबुलेंस भेज कर मरीज को अस्पताल तक पहुंचाया जाए. याचिका लगाने वाली शताक्षी वर्मा के वकील कमलेश कुमार ने 'आजतक' से बातचीत में कहा कि हम सरकार की इस स्कीम के खिलाफ नहीं हैं बल्कि उसे स्कीम को सही से लागू ना होने के खिलाफ हैं. बिना किसी प्रशिक्षक स्टाफ के एंबुलेंस जैसी सुविधा को भला कैसे शुरू किया जा सकता है. यह पहले से ही जान जोखिम में डाले हुए मरीज को और बदतर हालात में पहुंचाने जैसा है. कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 2 मई को करेगा.
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