पंडित जसराज का जीवन उनके संगीत गायन की तरह सुरीला नहीं. इसमें उनके सुर की तरह ही काफी उतार-चढ़ाव भी रहे हैं. लेखिका सुनीता बुद्धिराजा के लिए संगीत से जुड़ी हस्तियां लेखन का प्रिय विषय रही हैं. हालांकि उनकी 'आधी धूप', 'अनुत्तर', 'टीस का सफ़र' और 'प्रश्न-पांचाली' जैसी रचनाओं ने भी पाठकों के मन को खूब छुआ, पर संगीत के दिग्गजों के साथ सालों की गई बातचीत पर आधारित किताब 'सात सुरों के बीच' ने काफी चर्चा बटोरी. इस किताब में उन्होंने उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ, पं. किशन महाराज, पं. जसराज, मंगलमपल्ली बालमुरली कृष्ण, पं. शिवकुमार शर्मा, पं. बिरजू महाराज तथा पं. हरिप्रसाद चौरसिया के सुरीले सफर को शब्द दिए. बाद में पंडित जसराज की जीवनगाथा पर उन्होंने एक अलग पुस्तक लिखी, नाम रखा 'रसराज- पंडित जसराज'.
'साहित्य आजतक' के साल 2018 कार्यक्रम में उन्होंने कथाकरा, संगीत मर्मज्ञ लेखक यतींद्र मिश्र के साथ इस किताब पर बेहद विस्तार से चर्चा की थी. इस किताब में पंडित जसराज के जीवन से जुड़े कई रोचक किस्से शामिल हैं. जैसे जसराज के जन्मते ही पिता पंडित मोतीराम ने उन्हें शहद चटाया था. उनके घर में इसे घुट्टी पिलाना कहा जाता है. मां कृष्णा बाई का कहना था कि सभी बच्चों में से मोतीराम जी ने केवल जसराज को ही शहद चटाया था. बच्चों को मां की सेवा करने का अच्छा अवसर मिला, क्योंकि वह 1957 तक जीवित रहीं. पिता तो अपने गाने के सिलसिले में आते-जाते रहते थे.
साहित्य आजतक के पाठकों के लिए पुस्तक 'रसराज- पंडित जसराज' का एक अंशः
गाँव पीली मन्दौरी, जहाँ जसराज का जन्म हुआ हिसार (हरियाणा) से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. उस समय वह पंजाब में था. गाँव से स्टेशन लगभग 12 किलोमीटर था. एक दिन पंडित मोतीराम कहीं से प्रोग्राम करके गाँव लौटे. चूँकि स्टेशन और गाँव के बीच दूरी बहुत थी, तो ऊँट पर सवार होकर आये थे. साफ़-सुथरे सफ़ेद कपड़े पहने हुए थे. मैदान में छोटे-छोटे बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे. एक बच्चे की तरफ़ इशारा करके पंडित मोतीराम ने किसी से पूछा कि- भैया ये किसका बच्चा है? तो उन्हें उत्तर मिला कि ये आप ही का बच्चा है. फौरन ऊँट से उतर पड़े और धूल में नहाये जसराज को गोदी में उठा लिया. न अपने सफ़ेद कपड़ों की परवाह की और न ही दो-ढाई वर्ष के जसराज की धूल में सनी पोशाक की ओर देखा. गोदी में उन्हें उठाकर पैदल-पैदल घर आ गये. उसके बाद क्या हुआ, इसकी स्मृति किसी को नहीं है.
नन्हे जसराज का भरा-पूरा परिवार था. ढेर सारे भाई-बहिन, बड़े भाई मणिराम, बहिन पद्माबाई (रत्तन मोहन शर्मा की माँ), भाई प्रताप नारायण, फिर दो बहिनें जो नहीं रहीं, राजाराम (राजा भैया), बहिन पुष्पा और जसराज. बहुत सारे बच्चे हुए, जसराज का नौवाँ नम्बर था. इनके बाद एक बच्चे का जन्म और हुआ जिसका देहान्त हो गया. जसराज को बड़ी बहिन रमा के विवाह की धुंधली-सी याद है. पूरे परिवार में वो सबसे सुन्दर थीं. बड़े भाई साहब मणिराम जी के विवाह का भी थोड़ा-थोड़ा स्मरण है. बारात अबोहर गयी थी जिसमें ये भी गये थे.
जसराज का जन्म 28 जनवरी, 1930 ई. को हुआ. पिता पंडित मोतीराम गाँव में कभी-कभी ही रहते थे. वर्धा के शंकरराव मेघे के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता थी और वो अपना अधिक समय शंकरराव मेघे के यहाँ वर्धा में ही व्यतीत करते थे. मेघे परिवार आजकल राजनीति से जुड़ा है. शंकरराव मेघे अपने भतीजे दादा मेघे के यहाँ चले गये तो मोतीराम ने उनके पिता से कहा कि बाबा, मैं तो हूँ आपकी सेवा करने के लिए. उन्होंने तभी अपने घर में चिट्ठी लिखी. परिवार की सम्भवतः बहुत याद आयी होगी. पत्र में लिखा था कि मेरा मुँह देखना चाहते हो तो चले आओ.
बेटी की शादी के बाद 10 दिन में ही विवाह-मण्डप और पूरा काम-काज समेट कर वह गाँव से रवाना हो गये थे और किसी के साथ ठीक से बैठने का अवसर नहीं मिला था. तो पत्र मिलते ही पत्नी ने यानी मणिराम और जसराज की माँ ने घर का पूरा सामान, गहना, पैसा जो भी था, पोटली में बाँधकर माताजी श्रीमती कृष्णा बाई गाँव के चौधरी के पास रख दिया. मणिराम पिता के साथ ही रहते थे और परिवार को लिवाने आये थे. तो माँ, मणिराम और जसराज, तीनों गाँव से निकले. यह सन् 1933 का अन्त था. इसके बाद नन्हे जसराज लगभग एक वर्ष तक पिता के साथ ही रहे.
पुस्तकः 'रसराज: पंडित जसराज'
लेखकः सुनीता बुद्धिराजा
प्रकाशकः वाणी प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 534
मूल्यः रुपए 895
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