अभी पिछले पखवाड़े की ही बात है. दसवां नटसम्राट थिएटर प्रोमोटर अवार्ड लेते संस्कृतिकर्मी विश्व दीपक त्रिखा की बेबाक टिप्पणी पर श्रोता ठठाकर हंस पड़ेः ''मैं जहां भी, जिस भी डिपार्टमेंट में रहा, वहीं से हटाया गया. काम ही कुछ ऐसे करता था." दिल्ली के गोल मार्केट इलाके के मुक्तधारा सभागार में इसके बाद वे बोले, ''कुर्सी पर रहते हुए तो सभी पूछते हैं. श्याम कुमार ने मेरे रिटायर होने के बाद यह सम्मान दिया, यह बड़ी बात है." दो महीने बाद 20 की होने जा रही दिल्ली की नाट्य संस्था नटसम्राट ने उन्हें हरियाणा में नाटकों को बढ़ावा देने के लिए इस साल के थिएटर प्रोमोटर अवार्ड के लिए चुना था.
अव्वल लेखक, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री और बैकस्टेज वगैरह के अवार्ड तो दस साल से दिए जाते आ रहे थे लेकिन थिएटर प्रोमोटर के रूप में यह नया सम्मान तीन साल जोड़ा गया. इसकी वजह बड़ी जेनुइन थी, जिसे श्याम कुमार बेहतर ढंग से जानते थेः ''नाटकों के लिए ऑडिटोरियम लगातार महंगे होते जा रहे हैं. रंगकर्मी जैसे-तैसे इंतजाम कर जगह जुगाड़ते हैं. ऐसे में इधर के वर्षों में उत्तर भारत में जगह-जगह कुछ ऐसे चेहरे सामने आए जो खुद लेखक-कलाकार न होने के बावजूद नाटकों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा देने को तैयार दिखे. मुझे लगा कि इनका भी सम्मान होना चाहिए."
मजे की बात है कि बाकी श्रेणी के पुरस्कारों की तरह इसमें भी वे किसी तरह की रकम नहीं देते, फिर भी सम्मानितों के लिए यह जैसे टॉनिक का काम करता है. इसी मुक्तधारा सभागार में पिछले साल यह अवार्ड दिल्ली विश्वविद्यालय के एआरएसडी कॉलेज के प्रिंसिपल ज्ञानतोष झा ने कॉलेज में प्राप्त किया था. दस साल में सम्मानित 70 से ज्यादा लेखकों/कलाकारों/संस्कृतिकर्मियों की सूची में भानु भारती, त्रिपुरारि शर्मा, सुषमा सेठ, बनवारी तनेजा और मीराकांत से लेकर महेंद्र मेवाती, टीकम जोशी और हरविंदर कौर तक शामिल हैं. दर्जनों तो ऐसे हैं, जिनके जीवन में पहली बार ऐसा मौका आया. मसलन बेस्ट बैकस्टेज के लिए तीन साल पहले सक्वमानित मोतीलाल खरे. बैकस्टेज (प्रॉपर्टीज) के पितामह माने जाने वाले, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल में कार्यरत खरे ने तब भावुक होकर कहा था, ''जिंदगी का पहला अवार्ड है, संभालकर रखूंगा." उन्हीं की तरह, विशाल भारद्वाज की कई फिल्मों में अभिनय करने वाले और विश्वप्रसिद्ध निर्देशक रतन थियाम के नाटकों में प्रकाश परिकल्पना कर चुके अवतार साहनी को पिछले साल श्रेष्ठ निर्देशन के लिए पहली दफा यहीं अवार्ड मिला.
दिल्ली और दूसरे शहरों के रंगकर्मियों के लिए भी नटसम्राट के ये अवार्ड एक बड़ा नैतिक प्रोत्साहन हैं. सही मायनों में ये साधारण बने रहकर असाधारण काम कर जाने वालों का सम्मान बन गए हैं. श्याम कुमार का थिएटर करिअर कमोवेश आंदोलनकारी रंगकर्म का चेहरा बन गए अरविंद गौड़ के समानांतर ही चला है. कुमार की माने तो वे गौड़ की संस्था अस्मिता के संस्थापक सदस्यों में थे. कुमार का रुझान कॉमेडी थिएटर की ओर बढ़ा और बाद में इन नाटकों के स्टार अभिनेता बने फरीद अहमद के साथ मिलकर उन्होंने दिल्ली के मंच पर मजबूत जगह बनाई. चालीसेक लोकप्रिय कॉमेडी नाटकों के 1,200 से ज्यादा शो के बाद नटसम्राट अगले महीने पटना, बीकानेर और फिर हरियाणा में कुछ नाटकों के शो करने जा रहा है.
लेकिन हर शाम मंडी हाउस पर किसी चाय की दुकान पर कलाकारों के साथ गप मारते मिल जाने वाले श्याम कुमार अपने नाटकों से ज्यादा छोटे-बड़े रंगकर्मियों के मसीहा के रूप में चर्चित हो उठे हैं. उनका यह चेहरा योजनाबद्ध ढंग से नहीं बल्कि ''करो और सीखो" के पैटर्न पर उभरा है. मंडी हाउस के सभागारों के किराए 45,000-80,000 रु. रोज तक पहुंचने पर उन्होंने करीब 30,000 रु. किराए वाले मुक्तधारा सभागार को आबाद किया. डीयू के कॉलेजों में एक नाट्य प्रतियोगिता में निर्णायक के रूप में जब उन्होंने न चुने गए कलाकारों के हताश चेहरे देखे तो उन्हें अपने नाट्य उत्सवों में न्यौत दिया. यह सिलसिला 15 साल से जारी है.
इस साल भी 10-14 जनवरी तक चले उत्सव में वरिष्ठ रंगकर्मियों के नाटकों के अलावा डीयू के शिवाजी, खालसा, रामानुजन और एआरएसडी कॉलेज के थिएटर ग्रुप मौजूद थ. लेडी इरविन कॉलेज की 30 छात्राओं के ग्रुप के लगातार आग्रह पर उत्सव की योजना से परे जाकर आखिरी दिन दोपहर 2.30 बजे उन्होंने उनका प्ले कराया. तर्कः ''इससे उन छात्राओं के दिलोदिमाग में थिएटर की अहमियत बढ़ी." और थिएटर वालों के दिमाग में उनकी.
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