कनिका ढिल्लों की फिल्मों को सुर्खियों में बने रहना आता है. मनमर्जियां (2018) पर सिखों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप लगे थे. केदारनाथ (2018) पर 'लव जिहाद' को बढ़ावा देने के आरोप लगे. जुलाई में रिलीज हो रही मेंटल है क्या का अभी पोस्टर आया था कि विवाद शुरू हो गया. उसमें कंगना रनौत और राजकुमार राव आमने-सामने अपनी जीभ पर एक ब्लेड खड़ी किए हुए हैं. ट्विटर यूजर्स उससे नाराज हो गए. कुछ का मानना था कि यह तस्वीर लोगों को उत्तेजित करने के लिए है.
पटकथा लेखक आमतौर पर लोगों के निशाने पर नहीं होते, लेकिन उस पोस्टर में ढिल्लों को भी श्रेय दिया गया है. पोस्टर पर अपने नाम से खुश 34 वर्षीया ढिल्लों कहती हैं, ''एक समाज के रूप में, हमारे पास 'मानसिक रूप से स्वस्थ' और 'सामान्य' की बहुत सख्त परिभाषाएं हैं. मुझे लगता है कि मेंटल है क्या की कहानी उन लोगों को चित्रित करने की कोशिश करती है जो इन खांचों में फिट नहीं होते हैं.'' वे पूछती हैं, ''हम बिना उन्हें जज किए किस तरह देखते हैं?''
ढिल्लों 'अजीब' और 'पागल' जैसे लेबल को खारिज करती हैं, लेकिन फिल्म की टैगलाइन उसके अगले भाग में छिपी हुई है, ''मानसिक संतुलन को जरूरत से ज्यादा तरजीह दी जाती है.'' ढिल्लों कहती हैं, ''पटकथा लेखक के रूप में किसी चीज के बारे में नकारात्मक रूप से सोचे बिना मैं मनोरंजक कहानी बताने का अधिकार रखती हूं, लेकिन मुख्यधारा में बाधाएं आती हैं. मैं आपको एक कमर्शियल हिंदी फिल्म में परेशानी का विस्तृत उपचार तो नहीं बता सकती पर इतना तो कर ही सकती हूं कि लोग मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बातें शुरू करें. और यह पहले से ही हो रहा है.''
ढिल्लों अपने दिल की बात उड़ेल देने में विश्वास रखती हैं. 2014 में अपने पिता को खोने के बाद वे अवसाद और संताप में थीं. ''मैंने दो साल तक इसका सामना किया. इसी को कुछ हल्के-फुल्के अंदाज में लिखना चाहती थी.'' वे जोर देकर कहती हैं कि मेंटल है क्या दूसरों को अपने अंदर चल रही उथल-पुथल औरों के साथ साझा करने को प्रोत्साहित कर सकती है.
ढिल्लों समसामयिक चीजों से प्रेरणा लेती हैं. वे मानती हैं कि किसी कहानीकार के लिए यह सबसे अच्छे समय में से है और सबसे खराब दौर भी होते हैं, ''यह संभवत: हमारी डिजिटल पहुंच के कारण है, लेकिन एक चरम और दक्षिणपंथी रवैया है जो ज्यादातर चीजों को विकृत करता है. रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए यह स्वस्थ परंपरा नहीं है.''
ढिल्लों को उम्मीद है कि वे अपनी फिल्मों के साथ उन चीजों के बारे में बात करेंगी जिनके बारे में शायद ही कभी बात की जाती है. मसलन मनमर्जियां में रूमी (तासपी पन्नू) एक गुरुद्वारे में खड़े होने के दौरान अपने अवैध प्रेमी के बारे में सोचते हुए पकड़ी जाती हैं. ढिल्लों कहती हैं, ''मुझसे पूछा गया कि एक पवित्र स्थान पर खड़ी महिला अपने प्रेमी के बारे में कैसे सोच सकती है?
मैं उन लोगों से पूछती हूं कि किसी के मन में कब किस चीज का ख्याल आ जाए, उसे कैसे रोका जा सकता है? यह मेरे लिए पितृसत्तात्मक सोच का प्रतीक है. मैं इस पर खेद नहीं जता रही हूं या ऐसा नहीं मानती कि मैंने जो कुछ भी लिखा, उसे वहां नहीं होना चाहिए था.''
नेटफ्लिक्स ओरिजिनल की अपनी अगली फिल्म गिल्टी में ढिल्लों इसी बात पर चर्चा करेंगी कि शर्म की बात क्या है. बलात्कारी या उसके शिकार पर ध्यान केंद्रित करने की बजाए यह शो एक तीसरी महिला के दृष्टिकोण को अपनाता है. ढिल्लों के मन में मानसिक स्वास्थ्य और शुचिता को लेकर एक-सा तिरस्कार है. ''मेरी कहानी अगर एक व्यक्ति को भी असहज महसूस करा सकी, तो समझूंगी मैं सफल हुई.''
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