निर्देशक इम्तियाज अली की आने वाली फिल्म लैला मजनूं पर बातचीत
आपकी नई फिल्म लैला-मजनूं जल्द ही रिलीज होने वाली है. फिर उसी क्लासिक लोककथा का सहरा क्यों?
मैं लोककथाओं का एक पेपरबैक संस्करण पढ़ रहा था. मैं यह जानकर हैरत में पड़ गया कि लंबे विरह और जुदाई के बाद मजनूं के पास पहुंचने पर लैला कहती है कि "मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं''. मुझे लगा, कुछ समझने के लिए मुझे इसे लिखना होगा. कुछ सीन लिखे, फिर उसे लैला में रस आने लगा.
अपने भाई साजिद के साथ कॉकटेल (2012) के बाद दूसरी बार साझेदारी कर रहे हैं. कैसा अनुभव रहा?
बहुत मुश्किल वाला काम है. सब्जेक्ट को लेकर सबसे ज्यादा सिर फुटौव्वल होती है. यह फिल्म दिमाग के लिए नहीं, दिल से महसूस करने के लिए है. साजिद ने इसमें कुछ नई चीजें जोड़ीं जो मेरे बूते से बाहर की थीं.
फिल्म कश्मीर की पृष्ठभूमि पर है. क्या वहां टकराव वाले मसले को भी शामिल किया है?
कतई नहीं. क्या मुंबई में बनने वाली हर फिल्म में वीटी स्टेशन को सीएसटी कर देने का विवाद शामिल होता है? यह फिल्म कश्मीर की पृष्ठभूमि पर है और इसके 50 से ज्यादा किरदारों में से एक भी आतंकवादी नहीं है.
मैं कश्मीर पर संकीर्ण सोच रखने वालों की जमात में शामिल नहीं होना चाहता. कश्मीर के सियासी हालात को ध्यान में रखकर मैंने कई कहानियां लिखीं पर लगा कि इन्हें फिल्माकर लोगों को वही मुश्किलें बार-बार क्यों याद दिलाई जाएं?
आप उन फिल्मकारों में से हैं, जिनसे लोग फिल्म की कास्ट के बारे में नहीं बल्कि यह पूछते हैं कि फिल्म की पृष्ठभूमि कहां की है.
(हंसते हुए) मैं अपनी जिंदगी से ज्यादा फिल्मों में जीता हूं. इस इंडस्ट्री में एक ही हथियार है स्क्रिप्ट. मेरे पास चार कहानियां हैं, सो पता नहीं कि मेरा अगला कदम किस ओर होगा.
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Okay