भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने पुलिस से पूछा है कि जब मामला न्यायालय में विचाराधीन है तो पुलिस उनकी गिरफ्तारी पर मीडिया को क्यों संबोधित कर रही है.
दरअसल याचिकाकर्ता सतीश एस गायकवाड़ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से घटना की जांच व पुणे पुलिस से इसकी जांच रोकने की मांग को लेकर एक पीआईएल दाखिल की है. गायकवाड़ खुद को एक जनवरी को हुए भीमा कोरेगांव जातिगत हिंसा का पीड़ित बताते हैं.
अदालत ने पुलिस की प्रेसवार्त को 'गलत' करार देते हुए कहा कि जब सर्वोच्च न्यायालय मामले को देख रहा है तो पुलिस दस्तावेजों के बारे में कैसे बता सकती है, जिसे इस मामले में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है.
वहीं सरकारी वकील दीपक ठाकरे ने अदालत को भरोसा दिया कि वह इस मुद्दे पर संबंधित पुलिस अधिकारियों से चर्चा करेंगे और उनसे जवाब मांगेंगे. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 7 सितंबर को तय की है.
बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुलिस ने जून में सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन व महेश राउत को गिरफ्तार किया था. जबकि अगस्त में छापे के दौरान वामपंथी विचारक-वरवर राव, वरनॉन गोंजाल्वेस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज व गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया गया.
दूसरे चरण की 28 अगस्त की गिरफ्तारी को लेकर एक जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने 29 अगस्त को सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई तक सभी को नजरबंद रखने का आदेश दिया. जिसके दो दिन बाद 31 अगस्त को महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक परमबीर सिंह ने मुंबई में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया.
इस प्रेसवार्ता में उन्होंने कुछ दस्तावेज दिखाए और दोहराया कि गिरफ्तार पांच कार्यकर्ताओं ने माओवादियों के साथ मिलकर कथित तौर पर केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन को खत्म करने के लिए उनकी राजीव गांधी के तर्ज पर हत्या को अंजाम देने की साजिश रची.
पुलिस के मीडिया के संबोधन की वकीलों, कार्यकर्ताओं व प्रतिष्ठित व्यक्तियों व यहां तक कि शिवसेना ने निंदा की है.
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